Wednesday 18 August 2010

मुजफ्फरपुर में २४ साल

२४ साल इस शहर में कैसे बीते पता हीं नहीं चला। दो साल की उम्र से ही शहर में रहा। नाना-नानी के साथ। शुरू से सबकुछ उन्हे ही मान बैठा था। मां-पिताजी आते तो मौसी कहती इन्हे मां कहो और इन्हे पिताजी। मैं सोचता सबके मां-पिताजी तो साथ रहते है इसमें कहने की क्या जरूरत। मां तो मेरी नानी है और पिता नानाजी। लेकिन मुझे वो कहने का अभ्यास करना पड़ा। कभी-कभार उनलोगों के पास जाता तो कुछ देर बाद ही कहता कि चलिए मुझे ले चलिए। मां बोलती थोड़ी देर रूक जाओ. मैं कहता नहीं नहीं स्कूल का टास्क बनाना है...और शाम में दोस्तों के साथ खेलना भी तो है। कुरहनी या कुढ़नी विधानसभा इलाके के जगन्नाथपुर में नाना-नानी का घर था। कदम-कदम पर स्कूल। कोई एक किलोमीटर दूर तो कोई तीन-चार। पढ़ने में शुरू से दिल लगता था सो गुरुजी भी नाना-नानी से प्रशंसा करते थे। गणित का पहाड़ा और गुणा भाग बड़ी तेजी से करता तो गुरुजी कभी दस में दस नंबर भी दे देते थे। स्कूल में कभी कभार ही मार खाया। घर पर भी । लेकिन जब खाया तो जबरदस्त। एक दिन स्कूल जाने के बजाए खेलने चला गया। घर में खबर हो गई थी और फिर जो पिटाई हुई क्या कहें। पेड़ में बांध दिया गया था। रोते-रोते बुरा हाल। वो विजुअल मिल जाता तो आज कई चैनल कई घंटे विशेष बुलेटिन बना देते। लेकिन उस मार का सही प्रभाव पड़ा और फिर स्कूल ना जाने वाली बात कभी ना हुई। कुढ़नी से रेल स्टेशन ३ किलोमीटर की दूरी पर है। हाईस्कूल से लेकर बैंक और बड़ा मार्केट भी इलाके का यहीं है। शुरू में सरकारी स्कूल फिर कॉन्वेन्ट और फिर हाईस्कूल में पढाई की। संत पॉल एकेडमी और संत मैरीज स्कूल के बीच में कुछ दिनों तक बंगरा मिडिल स्कूल में भी रहा। कुढ़नी हाईस्कूल मे कई दोस्त बने। हाई स्कूल में रहते हुए कुछ प्राइज जीते। शहर में एक क्विज का आयोजन किया गया था। जिसमें कई हाई स्कूल के बच्चों को शामिल किया गया। मैने गणित में दूसरा और जीके में पहला स्थान हासिल किया था। दस-दस रुपए एंट्री फी थी। मामा साइकिल से छह किलोमीटर दूर प्रतियोगिता में शामिल होने ले गए थे। मुझे छोड़कर वो चले गए। लिखित में दोनों वर्ग में पहला आया था और फिर इंटरव्यू की तैयारी थी। इंटरव्यू शुरू था और मामा नहीं पहुंचे थे। मैने जीके का टेस्ट जीत लिया था। अपने ही स्कूल के मोहन के साथ टाईब्रेक होने के बाद टाईब्रेकर में मैने बाजी मार ली थी। इसके बाद गणित के टेस्ट में दो अंकों से मैं दूसरे स्थान पर रह गया था। दोनों में अवॉर्ड जीतने के बाद जीके की किताब, कुछ गिफ्ट और २५ रुपए नकद मुझे दिए गए। नकद की घोषणा देर से हुई जब मैं बाहर निकल गया था। माइक से एनाउंस हुआ मुझे बुलाया गया। और फिर मुख्य अतिथि ने खुश होकर नकद इनाम दिया था। मैट्रिक इसी स्कूल से किया। जब स्कूल में ५१५ बच्चों में सिर्फ ७ बच्चे पास हो सके थे। १९९९६ की बात है जब मंत्री जी का हेलीकॉप्टर सेंटर के उपर मंडरा रहा था। ९५ का एग्जाम देखा था किस तरह से चोरी बोर्ड में होती थी। फिर दुखी हुआ कि क्या ऐसे देना पड़ेगा। लेकिन ९६ में कड़ाई हुई, अच्छा लगा। इसके बाद इंटर और फिर ऑनर्स करते हुए प्रतियोगी टेस्ट और फिर अब पत्रकारिता।

मुजफ्फरपुर बहुत याद आता है...

मुजफ्फरपुर की हर गली से ही लगाव हो गया था। बिहार में कई जगहों पर गया। साउथ इंडिया के कई जगहों गया। आर्थिक राजधानी मुंबई, कोलकाता से लेकर देश की राजधानी दिल्ली सहित जयपुर, अहमदाबाद, गुजरात, लुधियाना, चंडीगढ़ और कई शहर घूमा। लेकिन कोई नहीं मुजफ्फरपुर जैसा। आप इसे अपने शहर से प्रेम भर नहीं कह सकते। सबको अपने शहर से प्रेम होता है। लेकिन एक बार मौका मिले तो मुजफ्फरपुर जरूर जाइएगा। कुछ दिन रहने के बाद ही आप इसे बेहतर तरीके से समझ सकेंगे। शहर सबको गले लगाता है। दूसरे शहर भी करते है। लेकिन इस तरह का बवाल यहां कभी नहीं होता। लोग एक-दूसरे की मदद करने को हर वक्त तैयार खड़े होते है। सिर्फ छठ और होली जैसे पर्वों में ही नहीं आम दिनों में भी लोग एक दूसरे की मदद करने को हमेशा तैयार मिलेंगे। मान लीजिए कि आप शहर से गांव जा रहे है। अकेले है, रास्ते में पत्ता पूछा। सामने वाले ने पता भी बता दिया फिर पूछा किनके यहां जाएंगे। और फिर वो आपको उनके घर तो छोड़ आए तो आश्चर्य मत करिएगा। ये अजनबी है कैसे साथ जाऊं मत सोचिएगा। उत्तर बिहार की राजधानी है ये । कई लोग तो इसे पटना से बेहतरीन और बड़ा शहर मानते है। सिर्फ पटना राज्य की राजधानी होने की वजह से ज्यादा महत्व पाता है वरणा मुजफ्फरपुर की बात ही कुछ और है। इस शहर में तनाव में तो होता ही नहीं। हिंसा,दंगे शायद ही कभी हुए। लोगों में सहने की शक्ति असीमित है। हां लेकिन इसके चक्कर में आप जैसा चाहे वैसा नहीं कर सकते। गोलू हत्याकांड। सात आठ साल पहले ये अपहरण उद्योग जोरों पर था। एक बच्चे गोलू को अपहरण कर मार दिया गया था। पुलिस पर भी आरोप लगे थे। सुबह अखबार में खबर छपते ही पूरा शहर एक हो गया था। पुलिस का विरोध जमकर हुआ था। भगवानपुर,मोतीझील से लेकर कई थानों को फूंक दिया गया था। शाम में फायरिंग भी हुई, कई लोग मारे गए थे। लेकिन अगले ही दिन सब सामान्य हो गया। पुलिस ने कार्रवाई का भरोसा दिया। आरोपियों को भी शायद जल्दी में धर दबोचा गया। शहर के बारे में कई जानकारियों के साथ आगे भी ब्लॉग पर अपने अनुभव लिखूंगा।

कुछ बड़े नाम

शहर औऱ उसके बारे में बात करने से पहले यहां के कुछ प्रसिद्ध हस्तियों के बारे में जान लेते है। सुविख्यात कवि आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री को कौन नहीं जानता। पर्यारण और जानवरों से उनका प्रेम सबको पता है। कवि मुजफ्फरपुर की सबसे प्रसिद्ध या फिर किसी की नजर में सबसे बदनाम चतुर्भुज स्थान के करीब ही रहते है। पहले वो संस्कृत में लिखते थे फिर हिन्दी में लिखना शुरू किया। हाल ही में उन्हे पद्मश्री से सम्मानित किया गया था लेकिन ९४ वसंत देख चुके कवि ने इसे 'मजाक' कहकर लेने से मना कर दिया। उन्होंने कई काव्य-नाटकों की रचना की और 'राधा` जैसा श्रेष्ठ महाकाव्य रचा।परंतु शास्त्री की सृजनात्मक प्रतिभा अपने सर्वोत्तम रूप में उनके गीतों और ग़ज़लों में प्रकट होती है।इस क्षेत्र में उन्होंने नए-नए प्रयोग किए जिससे हिंदी गीत का दायरा काफी व्यापक हुआ।वैसे, वे न तो नवगीत जैसे किसी आंदोलन से जुड़े, न ही प्रयोग के नाम पर ताल, तुक आदि से खिलवाड़ किया।छंदों पर उनकी पकड़ इतनी जबरदस्त है और तुक इतने सहज ढंग से उनकी कविता में आती हैं कि इस दृष्टि से पूरी सदी में केवल वे ही निराला की ऊंचाई को छू पाते हैं।देवकीनंदन खत्री भी किसी परिचय के मोहताज नहीं। हिन्दी के प्रथम तिलिस्मी लेखक के रुप में उन्हे जाना जाता है।टीवी पर आने वाला सीरियल चंद्रकांता इन्ही की रचना पर बनाई गई थी। ... हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार में उनके उपन्यास चंद्रकांता का बहुत बड़ा योगदान रहा है। इस उपन्यास ने सबका मन मोह लिया। इस किताब का रसास्वादन के लिए कई गैर-हिंदीभाषियों ने हिंदी सीखी। बाबू देवकीनंदन खत्री ने 'तिलिस्म', 'ऐय्यार' और 'ऐय्यारी' जैसे शब्दों को हिंदीभाषियों के बीच लोकप्रिय बनाया। उनका जन्म 29 जून 1861 को पूसा में हुआ था। एक और बड़े नाम हैं रामबृक्ष बेनीपुरी। आज शहर में उनके नाम पर रामबृक्ष बेनीपुरी महिला कॉलेज है। बेनीपुरी का योगदान भी खास याद किया जाता है।शहर के कई और लोगों ने जिले का नाम रोशन किया।रामेश्वर प्रसाद सिन्हा संविधान सभा के सदस्य थे, यह बहुत कम लोगों को याद होगा। महेश प्रसाद सिन्हा, राम दयालु सिंह और कई ऐसे लोग थ। फिलहाल अस्वस्थ्य चल रहे जार्ज फर्नान्डिस को यहां के लोगों ने काफी प्यार दिया। इस बारे में अलग से लिखूंगा।

मुजफ्फरपुर में आपका स्वागत है

स्वागत है आप सबका इस नए ब्लॉग पर। सबसे पहले ये बता दूं कि मुजफ्फरपुर में अपने कई बेहतरीन साल गुजारने के लिए मैंने इस शहर के बारे में लिखने के बारे में सोचा। इसका राज ठाकरे के मुंबई प्रेम से कोई लेना देना नहीं है। पहले पोस्ट में मुजफ्फरपुर के बारे में कुछ जानकारी। मुजफ्फरपुर का नाम सुनते ही कई चीजें जेहन में आती है उनमें से एक लीची है। शाही और चाइनीज लीची। इसके बारे में आगे अलग से पोस्ट होगा। सूती वस्त्र उद्योग और आम के लिए भी प्रसिद्ध है ये शहर। मोतीझील जो शहर का दिल है। बिहार में सबसे ज्यादा सिनेमा ह़ॉल और कई कॉलेज इस शहर में है। हिन्दू-मुस्लिम एकता और स्वतंत्रता संग्राम में योगदान के लिए इस शहर को याद रखा जाता है। बज्जिका यहां की मुख्य बोली है। वीकीपिडिया पर इसके बारे में कुछ इस तरह की जानकारी दी गई है।' इस क्षेत्र का उल्लेख रामायण जैसे ग्रंथों में मिलता है परंतु इसका लिखित इतिहास वैशाली के उदभव के समय से उपलब्ध है। मिथिला के राजा जनक के समय तिरहुत प्रदेश मिथिला का अंग था। बाद में राजनैतिक शक्ति विदेह से वैशाली की ओर हस्तांतरित हुआ। तीसरी सदी में भारत आए चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रा विवरणों से यह पता चलता है कि यह क्षेत्र काफी समय तक महाराजा हर्षवर्धन के शासन में रहा। उनकी मृत्यु के बाद स्थानीय क्षत्रपों का कुछ समय शासन रहा तथा आठवीं सदी के बाद यहाँ बंगाल के पाल वंश के शासकों का शासन शुरु हुआ जो 1019 तक जारी रहा। तिरहुत पर लगभग 11 वीं सदी मे चेदि वंश का भी कुछ समय शासन रहा। 1211 से 1226 बीच गैसुद्दीन एवाज़ तिरहुत का पहला मुसलमान शासक बना। चम्पारण के सिमराँव वंश के शासक हरसिंह देव के समय 1323 में तुग़लक वंश के शासक गयासुद्दीन तुग़लक ने इस क्षेत्र पर अधिकार कर लिया लेकिन उसने सत्ता मिथिला के शासक कामेश्वर ठाकुर को सौंप दी। चौदहवीं सदी के अंत में तिरहुत समेत पूरे उत्तरी बिहार का नियंत्रण जौनपुर के राजाओं के हाथ में चला गया जो तबतक जारी रहा जबतक दिल्ली सल्तनत के सिकन्दर लोदी ने जौनपुर के शासकों को हराकर अपना शासन स्थापित नहीं किया। इसके बाद विभिन्न मुग़ल शासकों और बंगाल के नवाबों के प्रतिनिधि इस क्षेत्र का शासन चलाते रहे। पठान सरदार दाऊद खान को हराने के बाद मुगलों ने नए बिहार प्रांत का गठन किया जिसमें तिरहुत को शामिल कर लिया गया।1764 में बक्सर की लडाई के बाद यह क्षेत्र सीधे तौर पर अंग्रेजी हुकूमत के अधीन हो गया। सन 1875 में प्रशासनिक सुविधा के लिये तिरहुत का गठन कर मुजफ्फरपुर जिला बनाया गया। मुजफ्फरपुर ने भारतीय स्वाधीनता आंदोलन में अत्यंत महत्वपूरण भूमिका निभाई है। महात्मा गाँधी की दो यात्राओं ने इस क्षेत्र के लोगों में स्वाधीनता के चाह की नयी जान फूँकी थी। खुदीराम बोस और जुब्बा साहनी जैसे अनेक क्रांतिकारियों की यह कर्मभूमि रही है। 1930 के नमक आन्दोलन से लेकर 1942 के भारत छोडो आन्दोलन के समय तक यहाँ के क्रांतिकारियों के कदम लगातार आगे बढ़ते रहे।मुजफ्फरपुर का वर्तमान नाम ब्रिटिस काल के राजस्व अधिकारी मुजफ्फर खान के नाम पर पड़ा है। 1972 तक मुजफ्फरपुर जिले में शिवहर, सीतामढी तथा वैशाली जिला शामिल था। मुजफ्फरपुर को इस्लामी और हिन्दू सभ्यताओं की मिलन स्थली के रूप में भी देखा जाता रहा है। दोनों सभ्यताओं के रंग यहाँ गहरे मिले हुये हैं और यही इस क्षेत्र की सांस्कृतिक पहचान भी है।"